नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-4
विश्राम,थकावट, सुख-दुख, अच्छा बुरा और इसी की महज छोटी-छोटी बातों का भड़क जाना, यह सब उनके जीवन के अंग है। जिनका कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं होता। एक लक्ष्य निर्धारण के पश्चात व्यक्ति इन सब भावनाओं से परे हो जाता है। तब तक के लिए जब तक कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त ना कर पाए, या किसी विशेष परीक्षा की परिधि में ना जा पाए। एक दृढ़ संकल्प व्यक्ति जब किसी लक्ष्य का निर्धारण कर लेता है, तो वो तब वह तक नहीं रुकता जब तक कि उसे प्राप्त ना कर ले।
कुछ ऐसा ही हाल कुछ लक्षणा का था। वह विश्राम को तैयार नहीं और समय अपनी गति से परे नहीं जा सकता। पूर्व निर्धारण के बिना कुछ भी घटित नहीं होता इस संसार में.... ना जीव की उत्पत्ति, ना मृत्यु और ना ही किसी वस्तु की प्राप्ति।
यहां तक लक्ष्य निर्धारण के पीछे भी कोई ना कोई तथ्य छिपा होता है। तब फिर भला लक्षणा कैसे उन नियमों को तोड़ सकती थी। जिसे खुद प्रकृति ने विशेष उद्देश्य से सृष्टि में जन्म का अधिकार दिया था।
लक्षणा की व्यग्रता देख कदंभ आश्चर्यचकित था।क्योंकि उसके अनुसार लक्षणा का यह व्यवहार बिल्कुल भी विपरीत था। वह भली भांति परिचित था लक्षणा के हर व्यवहार से, लेकिन तब भी इस प्रकार की व्यग्रता देख उसे चिंता हो रही थी, क्योंकि जिस सफर के बारे में लक्षणा को वह बताने जा रहा था। उसके लिए कोमल हृदय, कठोर, दृढ़ संकल्प और स्थिर चित्त का होना बहुत जरूरी है।
लेकिन वर्तमान जीवन में तपस्या की कमी और विशेष कृपा के अभाव में उसके अंदरूनी शक्ति को संभाल पाना शायद लक्षणा के लिए इतना सहज नहीं था। और इसी कारण वह वर्तमान में हो रही घटनाओं से अचानक वयग्र हो उठती थी।जब तक वह दैवीय शक्तियों के प्रभाव में होती। तब तक तो सब ठीक था।
लेकिन जैसे ही वह एकांत में जाती आभामंडल कमजोर होने पर उसकी ही शक्ति उसके लिए हानिकारक सिद्ध हो रही थी। जो कि बिल्कुल भी उचित ना था, क्योंकि कुंडली जागरण के पश्चात यदि साधक खुद को नियंत्रित ना कर सके तो कोयले में दबे हुए भाग की तरह खुद के ही नाश का कारण बन जाती। शायद इसलिए एक उत्तम गुरु का होना अत्यंत अनिवार्य है, जो शक्ति के साथ शक्ति नियंत्रण के उपाय समझा सके और जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त उर्जा संचार को रोकने में भी सक्षम हो।
कई बार पूर्व जन्म के कर्मों के कारण साधक जिसका उसे खुद भान नहीं होता। वह शीघ्रता से उस स्थिति की ओर बढ़ने लगता है जिसकी कल्पना खुद उसकी और गुरु की सोच से परे होती है, इसलिए गुरु के पास भी विशेष कृपा का आशीर्वाद होना और विशेष रक्षा कवच का होना भी आवश्यक है। वर्ना अपने साधक को बचाते हुए खुद के शक्ति भंडार के साथ-साथ जब अतिरिक्त शक्तियों का शोषण साधक को नियंत्रित करने हेतु गुरु द्वारा किया जाता है, तब वह खुद खतरे में पड़ सकता है।
शास्त्रों में कहा भी गया है, कि गुरु होना किसी धरती और आसमान से कम नहीं, जो एक और साधक को धरती सा धीरज और आकाश की ऊंचाइयों तक उठने का रास्ता बता सके।लेकिन इस विषय में लक्षणा को ऐसा गुरु मिलेगा कहां??
चिंता का यही विषय था, इसलिए कदम्भ ने लक्षणा को नियंत्रित हो थोड़ा विश्राम करने, आश्चर्य चित्रसेन जी के पास जा इस हेतु सलाह मांगी। आचार्य चित्रसेन जी कदम्भ की भावना देख मुस्कुराते हुए कहने लगे..... कदम्भ बेशक तुम सा वफादार साथी मिलना मुश्किल है, लेकिन लक्षणा के लिए उत्तम गुरु के रूप में मेरे बारे में सोचना तुम्हारी राय के अनुसार मैं खुद उचित नहीं समझता, तुम यही सोच कर आए हो ना??
लेकिन हां, तुम्हें एक उपाय जरूर बता सकता हूं कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए मैं तुम्हारी मंशा अनुसार लक्षणा को विशेष कवच प्रदान कर सकता हूं, तब तक तुम दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान कर मेरे गुरु आचार्य के पास जाओ, और मेरी तरफ से उन्हें प्रणाम कर अपनी इच्छा व्यक्त करना, हो सकता है मनोकामना पूर्ण हो जाए।
वे कभी भी प्रकृति के नियमों को हस्तक्षेप करने के पक्ष में नहीं होते, और उनके अनुसार चमत्कारिक शक्तियों से छेड़छाड़ बिल्कुल भी उचित नहीं है। लेकिन फिर भी जहां तक मैं देख सकता हूं, लक्षणा का भविष्य देख वे उसकी मदद जरूर करेंगे। यदि उनकी स्वीकृति प्राप्त हो गई। तब यह समझ लेना कि लक्षणा शत-प्रतिशत अपने लक्ष्य को प्राप्त अवश्य कर लेगी। क्योंकि मैं जानता हूं अपने गुरु की महिमा को और मेरा यकीन है, कि लक्षणा के भविष्य निर्धारण हेतु ही उन्होंने खुद यहां उपस्थित होकर इस चमत्कारिक दुनिया को उजागर किया।
इस विशेष सरोवर का आह्वान उन्हीं के द्वारा किया गया था, जिसके कारण मेरी तुमसे मुलाकात हो सके। कदम्भ जाओ मेरा तुम्हारे पास आने का आशय ही है, कि गुरु का आदेश प्राप्त हो चुका है। कहकर कदम्भ को चित्रसेन महाराज ने विदा किया।
कदम्भ चमत्कारिक शक्तियों से परिपूर्ण अश्व श्रेष्ठ नाम शक्तियों से सुसज्जित किसी भी रूप को धारण कर सकने वाला और किसी भी क्षण कहीं पर भी आने जाने की शक्ति वो भी बिना किसी रोक-टोक के, रखने वाला असामान्य शक्ति से परिपूर्ण अश्व था, और इसलिए वह चल पड़ा आचार्यवर की खोज में अपनी शक्ति लक्षणा के उद्देश्य पूर्ति हेतु।
पलक झपकते ही वह उस स्थान पर पहुंच गया, जहां आचार्यवर तपस्या में लीन थे। वहां जाकर कदम्भ देखता है आग और पानी के समावेश को। धधकती हुई ज्वाला खंड के ऊपर आचार्य का आसान और आसमान से एक धार में किसी झरने की तरह गिरती हुई विशाल जलराशि किसी जलप्रपात की तरह आचार्य के ऊपर गिर रही थी।
ऐसा अद्भुत नजारा देख कदम्भ ने तब तक रुक जाना उचित समझा। जब तक कि खुद आचार्य उसकी परिस्थिति को भाप आंखे न खोल दे, क्योंकि यह एक विशेष कृपा होती है तप करने की, जिसके बीच से तपस्वी को उठाना उचित नहीं है।
कदम्भ भी वहीं पर शांत चित्त होकर जमीन पर बैठ गया, और आचार्यवर के ध्यान खत्म होने की राह देखने लगा, और वह लक्षणा के बारे में थोड़ा चिंतित भी जान पड़ रहा था, वो मन ही मन सोच भी रहा था कि अब आचार्यवर लक्षणा के बारे में क्या बताएंगे??
क्रमशः....
Mohammed urooj khan
21-Oct-2023 12:05 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
20-Oct-2023 06:47 PM
बेहतरीन भाग
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